पटना के घाटों पर उमड़ी छठ व्रतियों की भीड़: दिनभर निर्जला रहकर शाम को करेंगी पूजा, गुड़ से बनी खीर का चढ़ेगा प्रसाद

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Publish : 26-03-2023 11:49 AM Updated : 26-03-2023 11:49 AM
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पटना में चार दिवसीय लोक आस्था का पर्व चैती छठ पूजन रविवार को खरना व्रत शुरू हो गया, जिसमें व्रती दिनभर निर्जला रहकर शाम को पूजा के लिए गुड़ से बनी खीर बनाती है। इस प्रसाद को मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से आग जलाकर बनाया जाता है। हालांकि शहरी इलाकों में मिट्टी के चूल्हे की उपलब्धता न हो पाने की स्थिति में कुछ लोग नए गैस चूल्हे पर भी इसे बनाते हैं। पर चूल्हा नया हो और अशुद्ध न हो इसका खास ध्यान रखा जाता है। फिर 27 मार्च सोमवार को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाएगा और उसकी अगली सुबह 28 मार्च मंगलवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

 

वहीं खरना के प्रसाद में गंगा जल के महत्व के बाबत जानकारी देते हुए लक्ष्मी देवी ने बताया कि आज के दिन बनने वाले प्रसाद में गंगाजल का विशेष महत्व होता है। गंगाजल के बिना खन्ना के प्रसाद का निर्माण नहीं होता है और इसीलिए आज वह अपने पूरे परिवार के साथ गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने के साथ-साथ गंगाजल ले जाने पहुंची हैं।

 

वहीं दूसरी ओर छठ महापर्व को लेकर पटना जिला प्रशासन की ओर से गंगा घाटों पर पर्याप्त व्यवस्था की गई है। घाटों पर आने वाले छठ व्रतियों के लिए चेंजिंग रूम के साथ-साथ गंगा नदी में बैरिकेडिंग करके उस पार जाने वाले लोगों पर नकेल कसने का काम किया जा रहा।

 

इससे पहले चैती छठ के नहाय-खाय पर शनिवार को पहले दिन व्रतियों गंगा स्नान किया। इस दौरान पटना के दीघा इलाके के गंगा घाट समेत गायघाट इलाके के कई घाटों पर स्नान के लिए अच्छी खासी भीड़ दिखी। साथ ही बड़ी संख्या में लोग गंगाजल लेकर घर जाते भी दिखे।

 

चैत्र शुक्ल चतुर्थी शनिवार को पवित्र स्नान के बाद कद्दू की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का भात खाकर व्रतियों ने चैती छठ के लिए नहाय-खाय का अनुष्ठान किया। आज यानी रविवार को खरना होगा, जिसमें गुड़, दूध व चावल की खीर और रोटी का प्रसाद खाकर व्रती 36 घंटे का उपवास शुरू करेंगी। 27 मार्च सोमवार को पहला अर्घ्य और 28 मार्च की सुबह उदीयमान सूर्य को अयं के साथ चैती छठ संपन्न होगा।

 

संतान के साथ धन प्राप्ति के लिए उत्तम है छठ व्रत

ज्योतिषाचार्य राकेश झा के अनुसार सूर्य षष्ठी व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। स्कंद पुराण में प्रतिहार पष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है।

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