माह-ए-रमजान: रमजान त्याग और भाईचारे का देता है संदेश

मुस्लिम भाइयों का पवित्र महीना रमजान के पहले जुमे पर विभिन्न मस्जिद में रोजेदारों की भीड़ नमाज अदा करने के लिए उमड़ पड़ी। नावकोठी, छतौना, वृंदावन, पहसारा, खैरवन, रजाकपुर, हसनपुर बागर, इसफा, विष्णुपुर, देवपुरा, समसा के मस्जिद में नमाज अदा कर देश की सलामती के लिए दुआ मांगी। जामा मस्जिद नावकोठी के इमाम मौलाना असगर ने कहा कि इस्लामी कैलेंडर का सबसे अहम तरीन और पाक महीना माह-ए-रमजान है।इसी महीने में कुराॅन शरीफ दुनिया में नाजिल हुई।यह महीना इस्लाम के मानने वाले को ही नहीं बल्कि समूची इंसानियत को आपसी मुहब्बत,बाहेमी इमदाद(आपसी सहयोग)और भाईचारे का पैगाम देती है। पैगंबरे इस्लाम हजरत मुहम्मद (सअव) के मुताबिक रोजा बन्दों को जब्ते नफ्स यानी चाहत,ख्वाहिंश पर काबू और परहेजगारी की सीख देती है।
दरअसल इंसान का जिस्म और रूह दोनों आपसी तालमेल से वजूद में है।आम तौर पर इंसान जिस्मानी जरूरतों भूख, प्यास, चाहत, जिस्मानी ख्वाहिश आदि के इर्द-गिर्द ही घूमते रहता है। रमजान दुनियावी कशिश ऐश इशरत से परहेज रखने का नाम है। रमज़ान के पहले दस दिन या पहला अशरा 'रहमत' का है। जब वह रोजेदारों पर रहमतों की बारिश करता है। बंदे के इबादतों में मिलने वाले एक नेकी(पुण्य) के जगह सत्तर गुना नेकी में इजाफा कर दिया जाता है।रमजान का मतलब अरबी जुबान में "रम्ज" से रमजान के महीने को जाना गया। रम्ज का मानी होता है "जला देना" यानी बंदे इस महीने में अपने किये हुए गुनाहों से पाक होने के लिए भूख प्यास और दुनियावी ख्वाहिश को जला देना है। रमजान का चांद का दीदार गुरूवार के शाम में हो जाने के बाद ही मुस्लिम भाइयों में चहल पहल शुरू हो गई। रमजान का पवित्र महीना जुमा से शुरू होने से इसका महत्व और काफी बढ गया।