आपको भी आ जाता है छोटी-छोटी बात पर रोना? जानें साइकोलॉजिकल वजह

कोई छोटी-छोटी बात पर क्यों रोने लगता है, अगर किसी गहरे दुख से नहीं निकल पा रहे तो क्या करें वहीं एंटी-डिप्रेसेंट को कम करने और तनाव से बचने के लिए क्या किया जा सकता है, जानें एक्सपर्ट से।
सवाल: मेरी उम्र 21 साल है। ढाई साल से एंटी-डिप्रेसेंट दवाएं ले रहा हूं। जब दवाएं छोड़ता हूं, गले व बाजुओं में कंपन होने लगता है। क्या करूं?
जवाब: अगर आप दवाएं छोड़ना चाहते हैं तो साथ में थेरेपी भी लें। समस्याएं सुलझाने के बेहतर तरीके सीखना, नेगेटिव सोच के पैटर्न को ठीक करना, तनाव कम करता है। अपनी स्किल्स डेवलप करें, इससे धीरे-धीरे दवाओं पर से निर्भरता कम होगी। आगे डिप्रेशन की समस्या नहीं होगी।
सवाल: हाल में, मैंने एगोराफोबिया के बारे में पढ़ा। मुझे लगता है कि यह समस्या मुझे भी है। जब घर से बाहर जाता हूं, घबराहट रहती है कि कहीं चक्कर न आ जाए। क्या करें?
जवाब: एगोराफोबिया का अर्थ होता है, ऐसी स्थिति जहां से बाहर निकलना मुश्किल लगता है। ऐसे में बेचैनी, चक्कर व डर महसूस होने लगता है। आपको लगता है कि आप फंस जाएंगे। यह फोबिया किसी बस, लिफ्ट, रेल, मेट्रो, फ्लाइट व भीड़ वाले स्थान के लिए हो सकता है। आप किसी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से मिल सकते हैं, जो बताते हैं कि इस समस्या का मूल कारण क्या है, यह विचार और क्यों उत्पन्न हो रहे हैं। सीबीटी, सिस्टेमैटिक डिसेंसिटाइजेशन और एंग्जाइटी कम करने की कुछ तकनीक होती हैं, जिससे एगोराफोबिया से आराम मिल जाता है।
सवाल: मुझे छोटी-छोटी बातों पर रोना आ जाता है। बहुत जल्दी बातें बुरी लग जाती हैं। क्या थेरेपिस्ट से मिलना होगा?
जवाब: छोटी-छोटी बातों पर रो पड़ना, बताता है कि आप भावनात्मक रूप से बहुत संवेदनशील हैं। आपको लगता है कि लोग आपको स्वीकार नहीं करेंगे। हो सकता है आप बहुत सोचते हों, दूसरों को खुश करने की कोशिश में लगे रहते हों। फिर, जब दूसरों से आपकी उम्मीदें पूरी नहीं होती तो आप दुखी हो जाते हैं। ऐसे में अपनी भावनाओं को जाहिर न कर पाना, आपको कमजोर बना देता है। यह जरूरी नहीं कि सभी हमें पसंद करें, हमारी राय से सहमत हों, हम दूसरों की बातों को पॉजिटिव ढंग से ले सकें, यह सीखने में थेरेपिस्ट मदद कर सकते हैं।
सवाल: चार महीने पहले मैंने अपने बहुत करीबी को खो दिया है। मैं दुख से बाहर नहीं आ पा रही हूं। मुझे नींद नहीं आती है। नौकरी करती हूं, पर मन नहीं लगता। क्या करूं?
जवाब: सबका दुख से उबरने का अपना तरीका होता है। चार महीने बाद भी समस्या हो रही है तो थेरेपिस्ट से मिल लें। कहीं न कहीं आप यह स्वीकार नहीं कर पा रही हैं। साथ ही, खुद से पूछें, जिन्हें आपने खोया है, वो आपको किस तरह देखकर खुश होते? धीरे-धीरे खुद को संभालते हुए अपने रुटीन की ओर लौटें।