200 वर्गफीट जगह की कमी दूर: तीन वर्ष से बेकार पड़े 60 लाख के ब्लड सेपरेटर के लिए शुरू हुआ भवन निर्माण

तीन वर्ष से सदर अस्पताल में अनुपयोगी पड़ा 60 लाख रुपए का कंपोनेंट्स सेपरेटर मशीन के लिए 12 लाख की लागत से नया भवन बनना प्रारंभ हो गया है। इस ब्लड सेपरेटर मशीन के लगते ही एक यूनिट ब्लड की उपयोगिता जहां चार गुणा बढ़ जाएगी। वहीं डेंगू, थैलीसीमिया एवं एड्स सहित अन्य बीमारियों में ब्लड को लेकर जिले वासियों को होने वाली परेशानी अब दूर हो जाएगी।
बता दें कि तीन वर्ष पहले ही तात्कालीन डीएम अरविंद वर्मा की पहल पर ब्लड सेपरेटर मशीन सदर अस्पताल में लगाया गया। लेकिन कंपोनेंट्स सेपरेटर मशीन लगाने के लिए मिलने वाले लाइसेंस में 15 सौ वर्ग फीट का जगह होना चाहिए था। जबकि सदर अस्पताल में संचालित दिनकर ब्लड बैंक 15 सौ की जगह 13 सौ स्क्वायर फीट का ही था। 200 वर्ग फीट जगह कम होने के कारण ब्लड सेपरेटर मशीन के लिए मिलने वाला लाइसेंस नहीं मिल पा रहा था।
ब्लड बैंक के उपर बनेगा रक्तदान के लिए विशेष हॉल
राज्य सभा सांसद प्रो राकेश सिन्हा ने सांसद निधि से 12 लाख रुपए की स्वीकृति दी है, जिससे दो सौ क्वायर फीट का भवन एवं सीढ़ी का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। बताया जाता है कि भवन निर्माण कार्य पूरा होते ही बरौनी रिफाइनरी द्वारा अपने सीएसआर फंड से उपरी मंजिल पर एक अत्याधुनिक हॉल बनवाया जाएगा, जिसमें रक्तदान शिविर लगाने को लेकर विभिन्न तरह की सुविधा उपलब्ध रहेगी। साथ ही यहां आने वाले लोगों के लिए पेयजल एवं बैठने की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी।
डेंगू, बर्न व एड्स पीड़ित मरीजों को भी मिलेगा लाभ
बरसात के दिनों में जिला में डेंगू मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है। ऐसे में डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाने के लिए पटना का रूख करना पड़ता है। लेकिन दिनकर ब्लड बैंक में सेपरेटर मशीन जैसे ही काम करना शुरू कर देगा पटना जाने की समस्या से निजात मिल जाएगा। इसके साथ ही बर्न केस के मरीजों को बचाने के लिए प्लाज्मा की जरूरत होती है। बेगूसराय में इस तरह की व्यवस्था नहीं है।
इस मशीन से अब प्लाजमा और फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा एफएफपी को अलग कर चढ़ाए जा सकेगा। इसके साथ ही बेगूसराय में पांच हजार एड्स पीड़ित मरीज हैं, जो सदर अस्पताल से नियमित दवा का मिल रहा है। लेकिन एड्स के मरीजों को श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) की जरूरत पड़ने पर पटना रेफर करना पड़ता है। यह मशीन खून से डब्ल्यू बीसी को अलग करने में भी कारगर साबित होगी और उन्हें पटना रेफर नहीं करना पड़ेगा।
जिले में 57 थैलेसीमिया पीड़ित हैं बच्चे
थैलेसीमिया के मरीजों को लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) की जरूरत होती है। अब ब्लड से आरबीसी अलग करके थैलेसीमिया के मरीजों को चढ़ाना आसान होगा। दिसंबर माह में नागदह में एवं तीन दिन पूर्व लरूआरा गांव में एक थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे की मौत समय पर खून नहीं मिलने के कारण हो गई है।
ऐसे में इस उपकरण के लगने से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के अभिभावकों के लिए भी राहत देने वाली खबर है। यदि ब्लड डोनेट करने वालों का वजन 60 किलो है, तो उससे साढे चार सौ एमएल ब्लड लिया जाएगा और उससे प्लाज्मा, पीआरबीसी, प्लेटलेट एवं क्रायोप्रिंसिपीटेड अलग-अलग कर 4 तरह के मरीजों को जान बचाने का काम किया जाएगा।
2021 से बेकार पड़ा है कंपोनेंट्स सेपरेटर मशीन
मालुम हो कि वर्ष-2021 में तत्कालीन जिला पदाधिकारी अरविंद कुमार वर्मा ने सीएसआर फंड से साठ लाख रुपए का कंपोनेंट्स सेपरेटर मशीन सहित अन्य सामन खरीदा कर दिनकर ब्लड बैंक को दिया था। लेकिन इसके लिए अतिरिक्त लाईसेंस लेने एवं अन्य प्रक्रिया में सदर अस्पताल प्रशासन द्वारा बरती जाने वाली शिथिलता को लेकर दैनिक भास्कर ने समय-समय पर उजागर करने का काम किया, जिससे तत्कालीन डीएम अरविंद कुमार वर्मा ने जाते-जाते तीस लाख रुपए से ब्लड बैंक में पांच एसी लगवाया एवं बिजली आपूर्ति व्यवस्था दुरूस्त करवाया। इतना ही नहीं मरम्मती, रंगरोगन एवं टाइल्स लगाने का काम किया गया, जिससे ब्लड बैंक का सूरत तो बदल गया। लेकिन लाइसेंस नहीं मिल पाया।